श्री गणपति का ध्यान कर, जपो गौ मात के नाम।
इनके सुमिरन मात्र से, खुश होवेंगे श्याम………….
शास्त्रों में गौमाता का वर्णन: आज इस ब्लॉग के माध्यम से हम जानेंगें भगवान कृष्ण का अद्भुत गौ प्रेम और साथ ही यह भी बतायेगें की गौमाता का सृजन कैसे हुआ था और गाय के दूध से गीता सार का क्या सम्बन्ध है।
भगवान श्री कृष्ण, वो नाम जिसको मात्र सुन लेने से ही रोंम रोम पवित्र हो जाता है, भगवान श्री कृष्ण… जो प्रेम, दया, मित्रता का सागर हैं….ऐसा ही कुछ प्रेम है भगवान का गायों को लेकर..
हिन्दू धर्म[1] में गाय को माता, कामधेनू, कल्पवृक्ष और सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली बताया गया है। गाय माता के संपूर्ण शरीर में तैतीस कोटी देवी-देवताओं का वास होने का उल्लेख भी शास्त्रों में मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण गौ सेवा के अन्नय प्रेमी थे। शास्त्रों में गाय माता के 108 नाम बताएं गए है। कहा जाता है कि गाय के इन 108 नामों का जप करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं।
अब आप कहीं ना कहीं ये सोंचते भी होंगें या मन में प्रश्न आता होगा की अगर भगवान कृष्ण गायों के इतनें प्रेमी थे तो कृष्ण भगवान कौन सी गाय का दूध पीते थे?
तो आपके इस उलझन को भी हम दूर किये देते है, दरअसल एक बार भगवान श्रीकृष्ण के मन में दूध पीने तीव्र की इच्छा होने लगी। उस समय वर्तमान में कोई गाय उपस्थित नही थी । तब भगवान ने अपने वामभाग से लीलापूर्वक सुरभि गौ (शास्त्रों में गौमाता का वर्णन) को प्रकट किया……..उसके साथ एक बछड़ा भी था जिसका नाम मनोरथ था। उस गौ को सामने देख श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा ने एक रत्नमय पात्र में उसका दूध दुहा और उस सुरभि से दुहे गए स्वादिष्ट दूध को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने पीया। मृत्यु तथा बुढ़ापा को हरने वाला वह दुग्ध अमृत से भी बढ़कर था। सहसा दूध का वह पात्र भगवान के हाथ से छूटकर गिर पड़ा और पृथ्वी पर सारा दूध फैल गया। उस दूध से वहां एक सरोवर बन गया जो गोलोक में क्षीरसरोवर (शास्त्रों में गौमाता का वर्णन) के नाम से जाना गया । गोपिकाओं और श्रीराधा के लिए वो क्रीड़ा सरोवर बन गया। उस क्रीड़ा सरोवर के घाट दिव्य रत्नों द्वारा निर्मित थे। भगवान की इच्छा से उसी समय असंख्य कामधेनु गौएं प्रकट हो गईं जितनी वे गौएं थीं, उतने ही बछड़े भी उस सुरभि गौ के रोमकूप से निकल आए। इस प्रकार उन सुरभि गौ से ही गौओं की सृष्टि मानी गई है।
भगवान कृष्ण को गायों को चरानें का बड़ा शौक था, तीनों लोकों के कष्ट हरने वाले श्रीकृष्ण के अनिष्ट हरण का काम गाय करती है। … नंद बाबा के घर सैंकड़ों ग्वालबाल सेवक थे पर श्रीकृष्ण गायों को दुहने का काम भी स्वयं करना चाहते थे। कन्हैया गायों को चरानें जाना चाहते थे पर मईया की आज्ञा भी तो अनिवार्य है, अब कन्हैया ने माता से गाय चराने के लिए जाने की जिद की और कहने लगे कि भूख लगने पर वे वन में तरह-तरह के फलों के वृक्षों से फल तोड़कर खा लेंगे। तब कहीं जाकर मईया नें आज्ञा दी ।
स्वदेशी वी आई पी की गोशाला में सभी गायो को ठीक उसी तरह प्रेम किया जाता है जैसे भगवान कृष्ण अपनी गायों को देते थे ।
कहा जाता है की भगवान श्री कृष्ण जब गाय चराने जाते थे, तो गोमाता के पीछे चला करते थे। गायों के खुरो से उड़ने वाली धूल, भगवान के मस्तक पर गिरती थी। तब उन मस्तक पर गौ-चारण, लीला से उठी गो-धूलि ऐसी लगती थी जैसे मानों नीलकमल का पराग हो।
शास्त्रों में गौमाता का वर्णन: गोपाष्टमी को होती है गौमाता और बछड़े की पूजा
आप सभी नें गोपाष्टमी का नाम तो सुना ही होगा और आपमें से बहुत से लोग तो गोपाष्टमी मनाते भी होंगे पर क्या आप जानते है की गोपाष्टमी मनाई क्यों जाती है ? भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है, कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी। गाय को गौमाता भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को गौ चराने के लिए जंगल भेजा था।
भगवान श्रीकृष्ण को केवल गायों से ही नहीं अपितु गोरस दूध, दही, मक्खन, आदि से अद्भुत प्रेम था। युही नही उन्हें हम माखन चोर भी कहते है ।
स्वदेशी वीआईपी की गौशाला से जो गोरस दूध, दही, मक्खन, आदि बनता है वो ठीक वैसे ही है जैसे गोकुल में गायों का लालन पालन कर उनसे गोरस दूध, दही, मक्खन, आदि बनाया जा रहा हो ।
श्रीकृष्ण द्वारा ग्यारह वर्ष की अवस्था में मुष्टिक, चाणूर, हाथी और कंस का वध, गोरस के अद्भुत चमत्कार के प्रमाण हैं और इसी गोदुग्ध का पान कर भगवान श्रीकृष्ण ने दिव्य गीतारूपी अमृत संसार (शास्त्रों में गौमाता का वर्णन) को दिया था। जिसका पान हम आज भी करते है । गौमाता की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने क्या-क्या नहीं किया? उन्हें दावानल से बचाया, इंद्र के कोप से बचाया और ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गिरिराज गोवर्धन को कनिष्ठिका उंगली पर उठाया। तब देवराज इंद्र ने ऐरावत हाथी की सूंड के द्वारा लाए गए आकाशगंगा के जल से तथा कामधेनु ने अपने दूध से उनका अभिषेक किया और कहा कि जिस प्रकार देवों के राजा देवेन्द्र हैं उसी प्रकार आप हमारे राजा गोविंद हैं और इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का नाम गोविंद पड़ा था।
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