हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गाय को घर के आंगन में बांधना शुभ माना जाता है। यह धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभप्रद होता है। घर के आंगन में गाय को बांधने से वास्तु दोष समाप्त होते है साथ ही निर्माणाधीन मकान में यदि बछड़े वाली गाय को लाया जाए तो उससे घर बनाने में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। लेकिन क्या आप यह बात जानते हैं कि बिहार में देशी गायों की नस्लें विलुप्त होने की स्थिति में हैं। इसका मुख्य कारण विदेशी नस्ल की मांग का अधिक होना है।
विदेशी गाय की देखरेख व संरक्षण आसान होती है और साथ ही यह देशी गाय के मुकाबले ज्यादा दूध देती है।
पशुपालकों के विदेशी नस्ल की गाय ही अब ज्यादा देखने को मिलती हैं। क्योंकि इनके संरक्षण में उन्हें ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। इसके अलावा ये गाय ज्यादा दूध देती है जिससे पशुपालकों को बहुत मुनाफा होता है।
लेकिन अगर बात करे सेहत की तो देशी गाय का दूध आपकी सेहत के लिए सबसे अच्छा होता है। देशी गाय के दूध में अपेक्षाकृत काफी मात्रा में एसएनएफ, फैट्स तथा कैल्शियम सहित हमारे शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व मौजूद होते हैं। देशी गाय के नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा देखा जाए तो इनका रखरखाव भी सस्ता होता है। लेकिन ज्यादा दूध उत्पादन के लालच में पशुपालक व दूध बेचने वाली कंपनिया ज्यादातर जर्सी, फ्रीजियन तथा अन्य संकर नस्ल की गाय ही पालते हैं।
भारत में देसी नस्ल की गाय अब तेजी से विलुप्त होने के कगार पर है। जानकारी के अनुसार बिहार के विभिन्न हिस्सों मे साहिवाल, थरपारकर, रेडसिंधी वअन्य देशी प्रजाति की गाय पायी जाती है। पूर्व में इस क्षेत्र में देशी नस्ल की गायों की भरमार थी। लेकिन अब ये कहीं-कहीं ही दिखाई देता है। देसी गाय भले ही औसतन तीन-चार लीटर दूध देती है लेकिन इसका दूध सेहत के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है।
ज्यादा दूध उत्पादन की होड़ में किसान देसी नस्ल की गायों को छोड़ कर शंकर नस्ल की गाय ही पलना पसंद करते हैं। ऐसे में बिहार से देसी नस्ल की गाय विलुप्त होने के कगार पर है। पशुपालकों का मानना है कि विदेशी नस्ल की गाय देसी की तुलना में अधिक दूध देती है। जिससे कम लागत में ज्यादा मुनाफा होता है।
सनातन धर्म[1] में गौ माता का बहुत बड़ा महत्व है। घर में कोई भी पूजा या शुद्धिकरण हो हर तरह की पूजा में गौ माता से जुड़ी सामग्री जरूर राखी जाती है। जैसे कि पूजा से पहले घर को गाय के गोबर से लीपना अनिवार्य होता है और पूजा या हवन में गाय के दूध से निर्मित घी का उपयोग किया जाता है। घर को गोबर से लीपने पर उस घर में माता लक्ष्मी का वास होता है। इसके अलावा इसके कुछ वैज्ञानिक पहलू भी है घर को गोबर से लीपने पर हानिकारक बैक्टीरिया भी मर जाते हैं। हालांकि आज के दौर में लोग इन बातों पर विश्वास नहीं करते लेकिन आज भी कई लोग इन तथ्यों को मानते हैं। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि गौ माता की सेवा करने से संपूर्ण देवी देवता प्रसन्न होते हैं।
हिन्दू धर्म में गौ दान का बड़ा महत्व है। प्राचीन समय में बड़े बड़े राजा महाराजा जब भी यज्ञ आयोजित करते थे तो ब्राह्मणों को दक्षिणा के रूप में गौ दान किया करते थे। गोदान सभी दानों में सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गाय का दान देने से पाप से मुक्ति मिलती है।
आज भी किसी की मृत्यु के बाद उस मनुष्य की आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए उसके परिवार के सदस्य हवन पूजन के बाद गोदान अवश्य करते हैं। गरुड़ पुराण में मृत्यु के पश्चात होने वाले गतिविधियों को विस्तार से बताया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार आत्मा को यमलोक में जाने के पश्चात सबसे पहले एक नदी पार करनी पड़ती है जो कि माता गंगा का रूद्र रूप होती हैं। इस नदी को पार में गौ माता ही सहायता करती हैं। ऐसे बताया गया है कि यदि मरने वाले व्यक्ति ने अपने जीवन काल में कभी गौमाता का दान किया हो या फिर उसकी मृत्यु के पश्चात उसके परिवार वालों ने उसकी मोक्ष प्राप्ति के लिए गोदान किया हो तो उस व्यक्ति को यमलोक में गंगा नदी को पार करना आसान हो जाता है। इसीलिए हिन्दू धर्म के अपने जीवन काल में एक बार तो गौ दान अवश्य करना चाहिए या फिर उस व्यक्ति के परिवार जनों को उसकी मृत्यु के पश्चात उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए गौ दान अवश्य करवाना चाहिए।
एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार आज सौ गायों में 20 से 25 ही देसी नस्ल की गाय बची हुई है। किसानों के बीच शंकर, फ्रिजियन एवं जर्सी गाय ज्यादा मांग है। वर्ष 2007 में हुए एक पशु गणना में सिर्फ गोगरी क्षेत्र में लगभग 7 हजार गाय थी जिसमें लगभग 2500 गाय ही देसी नस्ल की थी। लेकिन वर्तमान में एक आंकड़े के अनुसार गोगरी में अब केवल करीब 20 हजार गाय का पालन हो रहा जिसमें तीन से 4 हजार के करीब ही देसी नस्ल की बची हुई है।
केवल कम दूध देना ही बिहार में देसी नस्ल के कम होने का कारण नहीं हैं। गाय के प्रजनन के लिए अब सांढ़ का मिलना भी कठिन हो गया है। पहले गौशाला में गायों की संख्या बढ़ाने के कारणों से सांढ़ को पाला जाता था। पर आजकल गौशाला में भी सांढ बहुत कम देखने को मिलते है। जबकि बाजार एवं पशु चिकित्सा केंद्रों में क्रासब्रीड व विदेशी नस्ल का सीमेन आसानी से मिल जाता है।
पशुपालन पदाधिकारी डॉ. दिनकर कुमार जी का कहना है कि भारत में देसी नस्ल के गायों की संख्या काफी कम हुई है। जिसका मुख्य कारण किसानों के बीच विदेशी गायों की मांग का अधिक होना है। अधिक दूध उत्पादन के लालच में पशुपालक जर्सी, फ्रिजियन या क्रासब्रीड को ही पलना पसंद कर रहे हैं। ऐसे में जिले में देसी गाय की संख्या का कम होना स्वाभाविक है। पशुपालन पदाधिकारी का कहना हैं की देसी गाय का दूध अन्य गायों की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है।
एक शोध के अनुसार देसी नस्ल की गाय प्रतिदिन 2 से 5 लीटर तक दूध देती है। जबकि जर्सी नस्ल 8 से 12 लीटर, फ्रिजियन गाय 10 से 15 लीटर व क्रासबीड 5 से 8 लीटर तक दूध देती है। विदेशी गाय भले ही देशी गाय से ज्यादा दूध देती है लेकिन यह दूध आपके स्वास्थ्य के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है। वैज्ञानिकों द्वारा एक शोध में यह पता चला है की विदेशी गाय के दूध में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं जिससे कैंसर जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है।
देशी गाय का A 2 दूध अमृत के सामान होता है। यह हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। साथ ही दिल की बीमारी के खतरे को भी कम करता है। इसके अलावा देशी गाय का A2 दूध कैंसर जैसे घातक रोग से बचाता है। देशी गाय का दूध पाचन तंत्र के लिए भी लाभदायक माना जाता है। इन्हीं खास गुणों के कारण पुराने लोग छोटे बच्चों को केवल देसी गाय का दूध पिलाने की राय देते हैं।
किसानो के अनुसार देसी गाय का सिर्फ़ दूध ही नहीं, उसका गोबर भी गुणकारी होता है जिससे बीमारियां दूर होती हैं। वहीं दूसरी तरफ विदेशी गायों के गोबर से बीमारियां पैदा होती हैं।
करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो के एक रिपोर्ट के अनुसार देसी गाय के दूध की गुणवत्ता को विदेशी नस्ल की गायों के दूध से बेहतर बताया गया है। लेकिन भारत में अब देसी गायों के मुकाबले विदेशी नस्ल की गाय ज़्यादा लोकप्रिय हो रही है क्योंकि उनके ज़्यादा दूध उत्पादन के कारण किसानों में इनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
पशुपालकों का मानना है की देसी गाय की मुकाबले विदेशी नस्ल की गाय व्यवसाय के लिए बहुत अच्छी होती है क्योंकि देसी गाय बहुत कम दूध देती है। उनका कहना है की अब तो क्रास-ब्रीड वाली गाय ही ज़्यादा पाली जा रही है। ”विदेशी नस्ल या क्रास ब्रीड की गाय ज़्यादा दूध देती है जिससे मुनाफ़ा भी ज़्यादा होता है। जबकि देसी गाय उनके मुकाबले कम दूध देती है और दूसरी वजह यह है की देशी गाय के रख-रखाव में भी काफ़ी ज्यादा जतन करना पड़ता है।
प्राचीन चिकित्सा पद्धति के अलावा मोडर्न साइंस से भी यह प्रमाणित होता हैं कि गाय के मूत्र से कई तरह की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। कई ऐसे लोग हैं जो फिट रहने के लिए गौ मूत्र का सेवन करते हैं। इसके अलावा गाय के गोबर को खेती में खाद्य की तरह इस्तेमाल किया जाता है। जो खेती को और अधिक उपजाऊ बनाता है। गौमाता (गौमाता राष्ट्रमाता) के गोबर मे लगभग 60 प्रतिशत तक ऑक्सिजन होता है। इसीलिए पुराने समय में लोग अपने घरों को गाय के गोबर से लिपा करते थे। क्योंकि उस समय भी लोग यह बात जानते थे कि गाय के गोबर से घर लिपने पर घर का वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मक चीज़े घर से दूर रहती हैं। गौ माता के शरीर से निकलने वाली हर एक चीज का महत्व है।
गाय के थनों के अंदर 18 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। गाय के शरीर में मौजूद ये 18 प्रकार के खनिज के शरीर के अलग अलग स्थानों से आते है और इन सभी खनिजों को मिलाकर गाय का दूध बनता है। इन सभी खनिजों से निर्मित गाय का दूध मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसीलिए पुराने समय के लोग गाय के दूध का सेवन कर अधिक बुद्धिमान और बलवान हुआ करते थे और कड़कती धुप में भी दिन भर खेती का काम किया करते थे।
धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस प्रकार पहाड़ी क्षेत्र बादलों को अपनी ओर खींचते हैं और उस प्रदेश में वर्षा अधिक होती है उसी प्रकार गाय के सींगो के बीच का भाग भी बादलों को अपनी ओर खींचता है। इसीलिए जिस क्षेत्र में गाय (गौमाता राष्ट्रमाता) अधिक होती हैं वहां वर्षा भी अधिक होती है।
आज के समय में गाय की संख्या दिन प्रतिदिन घटती ही जा रही हैं और वह समय दूर नहीं जब हमारी नादानी के कारण देशी गायों (गौमाता राष्ट्रमाता) की संख्या विलुप्ती की कागार तक पहुंच जाएंगी। देशी गायों से कम दूध मिलने के कारण आज लगभग सभी किसान देशी गाय की नसल नहीं पलना चाहते उनका मानना है कि देशी गाय के मुकाबले विदेशी नस्ल से ज्यादा फायदा होता है और उनकी कोई विशेष देखरेख करने की आवश्यकता भी नहीं होती है। इसी कारण देश में देशी गाय की नस्ल लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। इसके अलावा गौ हत्या भी एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है। दूसरे धर्म के लोग गौ मास का व्यापार करने के लिए गायों की हत्या कर देते हैं। हालांकि सरकार ने गौमांस पर रोक लगा दी है लेकिन आज भी कुछ असामाजिक तत्व छुपकर गौ हत्या और गौमांस का व्यपार करते हैं।
भारत में देशी गाय का संरक्षण एक चिंता का विषय बन गया है। देशी गाय की महत्ता को समझते हुए हमें जगह जगह देशी गाय के संरक्षण के लिए गौशाला शुरू करनी चाहिए। इस गौशाला के माध्यम से रास्तों पर आवारा घूम रही गायों की देखरेख होनी चाहिए। सक्षम वर्ग के लोगों को गौशाला में दान करना चाहिए जिससे गौशाला में पाली जा रही गायों का संरक्षण अच्छे से किया जा सके और आपको भी गौपालन का सौभाग्य प्राप्त हो। इसके अलावा हमारी नई पीढ़ी जो आधुनिकता की चमक में अपने प्राचीन सभ्यता और संस्कारो को भूलती जा रही है उन्हें हमारें हिन्दू धर्म के प्रति जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान और कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।